
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम् पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
सनातन साम्राज्य का राष्ट्रिय ध्वज भगवा ध्वज,
जम्बूद्वीप स्थित पावन भूमि — भारत,
भायं रत: भारत:, भायं = ज्ञान, रत: = रतरहना भारत: = भारत,
जम्बूद्वीप का वह पावन खंड जहाँ लोग ज्ञान प्राप्त करने एवं ज्ञान देने एवं ज्ञान बाँटने में सदैव रत रहते हैं,वह पावन भूमि भारत है। जहाँ ज्ञान की देवी को माता भारती (सरस्वती) के रूप में पूजा की जाती है।
पाताललोक जम्बूद्वीप के गोलार्द्ध के नीचे स्थित था। पाताललोक का समस्त पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है। पाताललोक ही आज का अमेरिका और अफ्रीका है।
जम्बूद्वीप से प्राकृतिक कारणों से हिमखंड प्रदेशों के विलग हो जाने के पश्चात् आर्यावर्त्त शेष रहा। ईसाइयत एवं इस्लाम के अभ्युदय के पश्चातआर्यावर्त संकुचित होकर अखंड भारत शेष रहा।
ब्रिटिश अधीनता में अखंड भारत भी खंडित हुआ,
भारत शेष रहा। अब काले अंग्रेजोंने भी शेष भारत को भी खंड खंड करने का कुचक्र किया है।
हम आज भी किसी यज्ञ या पूजा अनुष्ठान में संकल्प लेते समय “जम्बू द्वीपे आर्यावर्ते भरतखंडे” का उच्चारण करते हैं। यह इस अवधारणा को सिद्ध करता है।
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क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा? साथ ही क्या आप जानते हैं कि हमारे प्राचीन महादेश का नाम “जम्बूदीप” था ?
परन्तु क्या आप सच में जानते हैं, कि हमारे महादेश को “”जम्बूदीप”” क्यों कहा जाता है और, इसका अर्थ क्या होता है ?
वस्तुतः हमारे लिए यह जानना अत्यंत ही आवश्यक है कि भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा ?
क्योंकि एक सामान्य जनधारणा है कि महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है!
लेकिन वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ बात पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करते हैं।
आश्चर्यजनक रूप से इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर अपने इतिहास के साथऔर अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए अत्यंत ही आवश्यक है।
क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि प्राचीन काल में सात भूभागों में अर्थात महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था। लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये इस परकभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा।
अथवा अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि जान बूझकर इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी।
परन्तु हमारा “जम्बूदीप नाम ” स्वयं में ही सारी कहानी कह जाता है जिसका अर्थ होता है, समग्र द्वीप। इसीलिए हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा विभिन्न अवतारों में मात्र “जम्बूद्वीप” का ही उल्लेख है क्योंकि उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था।
साथ ही हमारा वायु पुराण इस से सम्बंधित पूरी बात
एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने प्रस्तुत करता है।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है।
वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारंभ में स्वयम्भु मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भरत खंड को बसाया था। चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था अतः उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लियाथा जिसका पुत्र नाभि था!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था,और, इसी ऋषभ के
पुत्र भरत थे तथा इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किये थे।
राजा का अर्थ उस समय धर्म,और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था।
इस तरह राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक अग्नीन्ध्र को बनाया था। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया और, वही ” भारतवर्ष” कहलाया।
ध्यान रखें कि भारतवर्ष का अर्थ है, राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है।
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम् पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(वायु 31-37, 38)
इन बातों को प्रमाणित करने के लिए अपने दैनिक कार्यों की ओर ध्यान देना आवश्यक है कि हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी संकल्प करवाते हैं।
हालाँकि हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं और,उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र मानकर छोड़ देते हैं।
परन्तु यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि जम्बू- द्वीपे, भारतखंडे, आर्याव्रत देशांतर्गते।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है।
इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त्त कहलाता है।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं।
परन्तु अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि जब सच्चाई ऐसी है तो फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि शकुंतला,दुष्यंत के पुत्र भरत से इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा संभवतः नामों के समानता का परिणाम हो सकता है या हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा।
परन्तु जब हमारे पास वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य उपलब्ध है और,आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों वर्ष पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें?
सिर्फ इतना ही नहीं हमारे संकल्प मंत्र में पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ अट्ठारहवां वर्ष चल रहा है।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम बात एक अरब 97 करोड़ से अधिक पुरानी करते हैं परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं!
आप खुद ही सोचें कि यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है?
इसीलिए जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों तो फिर,उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों के आधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारा उत्तरदायित्व है।
हमारे देश के बारे में वायु पुराण का यह श्लोक उल्लेखित है।
हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।
तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।
★इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है।
ऐसा इसीलिए होता है कि आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं और, यदि किसी पश्चिमी इतिहासकार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है।
परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें तो,रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है। और यह भ्रांतिपूर्ण अवधारणा है।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है। परन्तु आश्चर्य जनक रूप से हमने यह नही सोचा कि एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे,यह कैसे संभव है?
विशेषत: तब जबकि उसके आने के समय यहां यातायातके अधिक साधन नही थे, और वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में सिर्फ इतना काम किया कि जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं उन सबको संहिताबद्घ कर दिया।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है।
और ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं इसीलिए अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए।
क्योंकि इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है जैसा कि इसके विषय में माना जाता है, बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है।
प्रत्यंचा सनातन संस्कृति
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इसीलिए हिन्दुओं जागो और, अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो! हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं और, हमें गर्व होना चाहिए कि हम हिन्दू हैं!
जयति पुण्य सनातन संस्कृति★
जयति पुण्य भूमि भारत★
जयतु जयतु हिन्दूराष्ट्रं★
सनातन धर्म की जय★
सनातन साम्राज्य की जय★
भगवा ध्वज की जय★
सदा सर्वदा सुमंगल★
हर हर महादेव★
वंदेभारतमातरम्★
जय भारत★
जय सनातन★
जय भवानी★
जय श्री राम★
जय श्री कृष्ण★
जय महादेव★
हर हर महादेव★
