दिव्य शक्ति केन्द्र सहस्त्रार

-हर मनुष्य शरीर नही एक आत्मा है । आत्मा एक सूक्ष्म प्रकाश का बिंदू है जो भृकुटी में रहती है और दिमाग के द्वारा सारे शरीर को नियंत्रित करती है ।

-मनुष्य के शरीर में सात दिव्य शक्ति केन्द्र हैं  । जिनके  द्वारा आत्मा  शरीर के अलग अलग अंगो को शक्ति देती है तथा  शरीर से सूचनायें प्राप्त करती है और आवश्यक निर्देश देती है ।

-ये शक्ति केन्द्र रीढ़ की हड्डी में अलग अलग जगहो पर हैं ।

-मुख्य दो दिव्य शक्ति केन्द्र हैं । एक है मूल आधार  जो रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचे वाले मनके में है ।  इसमे कुंडलनी शक्ति रहती है ।  दूसरा शक्ति केन्द्र है सहस्त्रार जो सिर में पतालू में है ।

-आज हम सहस्त्रार  के बारे चर्चा  करेगें ।

-पृथ्वी के उतरी एवम दक्षिणी ध्रुव की तरह हर मनुष्य में दो ध्रुव है सहस्त्रार  और मूलाधार ।

-सहस्त्रार  को उतरी ध्रुव के समान समझा  जा सकता है ।

-पृथ्वी उतरी ध्रुव से सूर्य से शक्तियां  प्राप्त करती है । जिस से  धरती पर  पेड़ पौधे उगते है  तथ चुम्बकीय बल पैदा होता है । मनुष्य वा जीव जन्तुओं  के  शरीर की रक्षा के  लिये भोजन   की पूर्ति होती  है ।

-ऐसे ही सहस्त्रार चक्र सूर्य के माध्यम  से भगवान  से जुड़ा  हुआ है । इस केन्द्र से हम सूर्य तथा  भगवान  दोनो से शक्ति प्राप्त करते है । जिस से आत्मा और शरीर दोनो का काम चलता  है ।

-ये चक्र भी  आत्मा के समान  एक प्रकाश का बिंदू है । परंतु यहां पर स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर तथा  भगवान  से सम्पर्क करने वाली नस नाड़ीया मिलती है । उन  से निकलता हुआ प्रकाश ऐसे लगता है जैसे फूल की पंखडीया   हो, इसी लिये इसे  1000 पंखडीयों वाला कमल भी  कहते हैं लेकिन वह ।

-यह सिर के मध्य में पतालू (नवजात बच्चे का कोमल भाग ) में स्थित होता है । बच्चा  जब दाँत  निकालने लगता है तो पतालू का कोमल भाग  कठोर हो जाता है ।

-यह शक्ति केन्द्र पीनियाल ग्रंथि ( जिस में आत्मा रहती है ), मस्तिष्क और  पूरे शरीर पर अपना अधिकार  रखता  है ।

-इसका सीधा  सम्बन्ध आज्ञा चक्र अर्थात मन अर्थात आत्मा  से होता है ।

-आकाश तत्व अर्थात सूर्य और भगवान  की शक्तियों के प्रवेश करने का मुख्य द्वार  है ।

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By नमोन्यूजनेशन

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