*यदि हृदय में निर्मल प्रेम नहीं है तो समझना चाहिए कि अभी सच्ची साधुता का विकास नहीं; क्योंकि जहां प्रेम नहीं होता वहां गंदा स्वार्थ रहता है, और जहां स्वार्थ है, वहां न है त्याग, न है ऊंची साधना और न है विषयासक्ति का अभाव। प्रेमहीन मनुष्य का जीवन घोर विषयी जीवनहै,वह सर्वथा मरुभूमि के सदृश शुष्क और उत्तप्त है।*

*🌹🌹श्री हरि चरणों में कोटि नमन!🌹🌹*

By नमोन्यूजनेशन

देश सेवा हिच ईश्वर सेवा

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